saritkriti
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कुहु कुहु करती हूँ सुनसान गलियों मे
मन रमाती हूँ वियावान गलियों मे
रस राग समझने वाला कोई चाहिए
बार बार खो जाती हूँ अंजान गलियों में
अंबिया की खुशबू मुझे लुभाती है
फिर लोट आती हूँ उन्ही सुनसान गलियों में
रस भरने के इंतजार मे टकटकी लगाए बैठी हूँ
कुहु कुहु राग सुनाती हूँ इन अंजान गलियों मे
रस स्वाद महसूस कर इतराती हूँ
बार बार सुर लगाती हूँ इन बेनाम गलियों में
गुंजायमान करती हूँ इन बेजान गलियों मे ।
सरिता प्रसाद
पटना , बिहार
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