saritkriti
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क्या मिला तुझे उस बेगुनाह का रक्त बहाने में,
क्या मिला तुझे उस परिवार का घर जलाने में।
क्या मिला तुझे दो पल की खुशियां,
बदले में किसी का जहां ही उजड़ गया।
ऐ नादान महसूस कर उस दर्द को,
नन्हीं जान दुनिया भी नहीं देखा हो।
उसके सर से पिता का साया उठ गया,
पत्नी के गुजर जाने से,
पति का घर-संसार ही लुट गया।
तू जिस क्षुधा, जिस परिवार के लिए,
नापाक हरकतें कर रहा है।
किसी की दुनिया उजाड़ रहा है ,
अगर तुझ पर ऐसा ही बीत जाए तो क्या होगा ।
उस जलजला को सहना कितना मुश्किल होगा ।
यही सोचकर अब भी तो संभल जाओ,
त्याग दो ऐसी नापाक हरकतों को।
बसाओ अमन और शांति को।
जो मजा है अमन और शांति से जीने में,
वो कहां ऐसे खून-खराबा करने में।
फेंक दो बंदूक को खतरनाक बारूद को,
अमन-शांति का लहराओ सफेद तिरंगा को।
खुद भी जी लो औरों को भी जी लेने दो।
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